वो छोटी सी नाव डूबी तो नहीं
मांझी के बगैर, बिना पतवार के,
बीच समंदर में,
तैरती, डूबती, कभी उतराती,
कभी इतराती रही, कई कई
बार तूफ़ानों से लड़ती रही.
लहरों पे था उसे विश्वास,
और आश्वासन क्षितिज का,
जो हर बार करता मजबूत
उसके इरादों को.
और एक दिन एक लहर
लौटा आई उसको किनारे पर,
एक पल आसमान को देख कर
मुस्काराई जैसे शुक्रिया अदा
कर रही हो,
और फिर मूंद ली पलकें
जहाँ लहरा रहा था
एक और समंदर
जिसमें उभर रहा था
अक्स उसकी बिटिया का
जो लहरा रही थी खुशी से
विदेश में नौकरी का
नियुक्ति पत्र
खुशियाँ बन गयीं बूँदें और
पलकों के कोरों से बहती मिल
गयी महासमंदर में.
राधिका