तिरगी चीर के अब रौशनी आने को है,
जाने क्यूँ शिकायत हमसे ज़माने को है।
ना कहो कोई हमें ख़तावार लोगों,
कौन सा रिश्ता अब यहाँ निभाने को है।
सब कुछ तो सीख लिया तुमने अब,
कौन सा हुनर बाकी तुम्हें सिखाने को है।
तुम्हीं क्यूँ पूछ लो उनसे भी जा के,
उनकी भी रज़ा मुझे आज़माने को है।
क्यूँ मय को सहारा बनाऊं मैं अब,
जाम-ए-इश्क़ ही काफी पागल बनाने को है।
कब के मर चुके होते जो तेरा ख़याल न होता,
ज़िन्दगी बाकी बस तेरे नाज़ उठाने को है।
लगता है आज किसी क़ाबिल हो गए हैं हम,
शायद ये ही जलन हमसे ज़माने को है।
…त्रिलोक