तपती मरूभूमि में
तलाशती,
चली जा रही है
पगली
पाने को नवजीवन आधार,
हर बार
यही भ्रम
अगला पड़ाव ही
शायद आख़िरी,
बस
अब और नही
लेकिन,
टूट जाता भ्रम
बार बार
रेतीले आँधी की तरह
एक झोंका समेट
लेता उसके
सारे स्वप्न ,
और ,
फिर वह कुछ समय
के लिए
टूट जाती
सोचती,
बस अब और नही
लेकिन,
सिलसिला यहाँ
रुकता नही
कुछ विराम के
पश्चात,
फिर,
यात्रा शुरू करती,
उसी मरूभूमि से
तलाशती
फिर वही
जीवनाधार
राधिका