इच्छा पर
प्रतिबंध लगाये मैने
पर,
चपला सी वह सीमा पार
चली जाती है.
बहुत याचना की मैने
लौट आने के लिये,
किन्तु वह,
सागर की लहरों सी,
दूर-सूदूर चली जाती है,
जब लहरें उसे वापस
किनारे पर ले आती हैं,
वह उदास हो, हँसना भूल जाती है.
बहुत प्रयास करने पर भी,
इच्छा को हँसाना
अपने बस की बात न रहती
और उसके आंसू
बरसते ही रहते हैं.