पूरे देश में डेवलेपमेंट की लहर चल रही है, हर तरफ चाहे शहर हो या गाव इसकी चपेट में आया हुआ है. सबके रूप बदल रहे हैं, शहरों में माल, सुपर बाज़ार, बिग बाज़ार खुल गये हैं, गाव भी अछूते नहीं रहे, लहलहाते हुए खेत भी प्लॉटिंग के रूप ले रहे है, उन पर कोठियाँ, अपार्टमेंट, बिल्डिंग्स बन रहे है, या बन गये हैं. चारो तरफ कंक्रीट का जंगल फैल गया है.
ऐसे ही एक छोटा सा गाव जंगल किनारे बसा हुआ है, वो भी डेवेलपमेंट के चपेट में आया हुआ है. चौराहो, . दोराहो, तिराहों का नामकरण हो रहा है. छोटे छोटे प्लॉट पे मकान बन रहे हैं.
एक दिन शाम को फ़ुर्सत में कुछ पुराने फिल्मी गीत सुन रही थी, तो मिलन शब्द सुन कर अचानक याद आया कि अरे इस गाव में मिलन चौक भी था, मैने स्कूटर उठाया और उस जगह पहुच गयी जिसका नाम सन् १९८० से सन् २००० तक मिलन चौक हुआ करता था. इसका नामकरण भी गाव के कुछ शरारती युवा लोगों ने ही किया था. होने को तो इसका नाम कुछ भी नहीं था, सिर्फ़ एक तिराहा था जिसका एक रास्ता जंगल की और जाता था.
अब मिलन चौक उस तिराहे का नाम क्यों पड़ा इसकी भी एक कहानी थी. दरअसल उन दिनो दोपहर में सड़कें सूनी हो जया करती थी दो बजे से चार बजे तक. तब लड़किया अपने घर से यह कह के निकलती कि वो अपनी सहेली के पास सिलाई, कढ़ाई या बुनाई का काम सीखने या पूरा करने जा रही है, और उस तिराहे पर जाके रुक जातीं. उधर से आती आशिकों की टोली, वही खड़े होकर बतियाते, अगले दिन किसको कहाँ मिलना है, तय करते और फिर ४ बजते बजते सब इधर उधर हो जाते, क्यू कि तब तक रास्ते पर चहल पहल बढ़ जाती, अब इस टाइम यानी २ से ४ बजे तक देखने वाले कुछ शरारती, आवारा या फिर सिंगल युवा होते या फिर दिलजले दिलफेंक युवा होते फब्तिया, कसते हुए निकल जाते. बाद में इन्हीं शरारती युवाओं ने इस तिराहे का नामकरण मिलन चौक कर दिया था.
आज इस मिलन चौक को देखा तो में चौंक गयी, उसके स्वरूप को देख कर, चौंकना स्वाभाविक ही था, सन् १९८० में इस गाँव की आबादी कुछ सौ हुआ करती थी. सड़क के दोनो किनारों पे घनी गुडहल की झाड़िया हुआ करती थी. सुनसान रास्ता हुआ करता था. आम के पेड़ हुआ करते थे. तब खेतो की प्लॉटिंग भी शूरू नहीं हुई थी. प्राइमरी स्कूल की टूटी फूटी बिल्डिंग थी एक किनारे पे और एक मज़ार हुआ करता था.
आज इस तिराहे के दोनो तरफ से झाड़िया और पेड़ नदारद थे, उनकी जगह ले ली थी ढेर सारी लाइन से बनी दुकानों ने. दो पब्लिक स्कूल खुल गये थे, प्राइमरी स्कूल भी अब अच्छी हालत में था, कुल मिला के उस तिराहे ( मिलन चौक) का काया कल्प हो चुका था. वो एक बस स्टॅंड बन गया था.
मैने पास से गुज़रते हुए आदमी को रोका और पूछा की इस तिराहे का नाम क्या है. उसने अज़ीब नजरो से मुझे देखा और फिर चारो तरफ देखा फिर पास से जाते हुए एक और आदमी को रोक के पूछता है इस तिराहे का क्या नाम है?
वो आदमी हंसा और बोला अबे तू क्या यहाँ नया बंदा है क्या ? १० बरस से तो तू यही रहा है. पहला आदमी बोला मैं नहीं ये मेडम पूछ रही है.
उसने मेरी और देखा फिर बोला ये मेडम तो यहा 3० साल से रह रही है यहाँ की पुरानी बाशिंदा हैं, मैडम क्या ज़रूरत पढ़ गयी इस जगह का नाम पूछने की? मैने उसको कोई जवाब नहीं दिया, वो फिर बोला अरे ये तो बस स्ट्रॅंड है. यहाँ बस खड़ी रहती है.
बेचारा मिलन चौक बस स्टेंड बन गया था.
राधिका.