गर मिल गये
जिंदगी के किसी
मोड़ पर
इत्तेफ़ाक़ से,
मुस्करा के पूछेंगे
हाल तुम्हारी बेबसी से,
तरसोगे तुम
देखने को
हमारे आँसू
मगर होंगी
मुस्कराहटे
हमारी
आँखो में,
तुम कर सको
कोई शिकवा –
शिकायत
मौका ना देंगे ,
मगर
याद दिलाएँगे तुमको
सर्दियो की वो
गुलाबी शामें,
गर्मियो की चटक
दोहपरी,
पीपल् के पेड़
के नीचे हंस हंस
के बातें करना
वो सावन् की झड़ी
वो बरसात की राते,
जहाँ बरसती थी
अनगिनत कसमे
वादों की बूँदें,
याद दिलाएँगे
तुमको
वो तुम्हारा दामन
छुडा के जाना
उस मोड़ से,
फिर
मुस्करा के पूछेंगे
हाल तुम्हारी बेबसी से,
गर मिल गये
जिंदगी के किसी
मोड़ पर
इत्तेफ़ाक़ से,
राधिका